मिश्र की शक्तिशाली आवाज मिश्र की पत्रकार और माडा मासर में मुख्य सम्पादक लीना अट्टाला, मिश्र की प्रसिद्ध पत्रकार है। संगीनों के साये में स्वतंत्र एवं निक्षपक्ष पत्रकारिता के क्षेत्र में मिसाल बन चुकी हैं। बेखॉफ मिश्र की सामाजिक एवं राजनितिक वास्तविक घटनाओं को अपने देश के नागरिकों एवं समूची दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करना, उनका मुख्य ध्येय है। उनके लेख काहिरा टाइम्स, अल-मासरी, द डेली स्टार, अल यूम, क्रिश्चियन सांइस मॉनिटर और थॉमसन रॉयर्स में छपे हैं। 2005 में वे बीबीसी वलर्ड सर्विस ट्रस्ट से जुड़ी। 2013 में इजिप्ट इंडिपेंडेंट के प्रिंट संस्करण के पतन से पहले, इसकी प्रंबध संपादक थी। वह मिश्र का एक ऑनलाइन दैनिक MADA MASR की सह-संस्थापक और पहली मुख्य संपादक है। लीना अट्टाला ने मिश्र में घटीत सभी महत्वपूर्ण घटनाओं को कवर किया हैं। इसमें मिश्र को 2011 की क्रांति भी शामिल हैं। इसके लिए उन्होंने अपने साथियों के साथ सुरक्षा बलों की ज्यादातियां भी सही। नवम्बर 2019 में मदा मसर ने मिश्र के राष्टपति अब्देल फत्ताह अल- सीसी की आलोचना करते हुए एक लेख लिखा इसके लिए उन्हें समुच्य विश्व पटल पर ख्याति प्राप्त हुई। यूनस्को ने उन्हें विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर बोलने के लिए आमंत्रित किया। वह सोशल मीडिया पर लगातार सक्रिय है और उनके प्रशंसकों की संख्या करोड़ो में है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर जर्नलिस्ट्स ने उन्हें 2020 नाइट इंटरनेशनल जर्नलिज्म अवार्ड प्रदान किया।
लीना को वर्ष 2020 के टाइम ने शीर्ष 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल किया। लीना को राजनेताओं और मशहूर हस्तियों से बार-बार धमकेयॉ मिलती रहती है परन्तु वह अपने बनाये रास्ते पर अडिग रहती हैं। इसके लिए उन्हें कई बार नजरबंद किया जा चुका हैं। गिरफ्तारी तो गाहे व गाहे होती रहती है। इनोवेटिव अरब मीडिया एंड द न्यू आउटलाइन्स ऑफ सिटिजनशिप वाली एक रिपोर्ट में लीना अट्टाला ने सेंचुरी फाउन्डेशन को बताया कि कई वर्षों से मिश्र में स्वतंत्र और आलोचक मीडिया का हिस्सा बनना कठिन काम है और कभी-कभी इसमें अकेलेपन का अहसास भी होता है। यहां तक सामान्य परिस्थियों में भी माडा-मास के लिए रिपोर्टिंग करना जोखिम भरा काम हैं। 5 जुलाई को मिश्र में स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए काला दिन साबित हुआ। इस दिन संसद ने एक कानून बनाया इसके तहत सरकार को अभिव्यक्ति की सवतंत्रता को दबाने नागरिकों की गोपनीयता भंग करने और शांतिपूर्ण प्रतिरोध को रोकने के लिए असीमित शक्तियां प्रदान की। यह कानून मीडिया विनियमन के नाम से जाना जाता है यह कानून पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर कुठाराघात है। सरकार बिना न्यायिक निर्णय के भी सेंसर लगा सकती है। कानून तोड़ने के लिए जुर्माना लगा सकती है। हिंसा भड़काने के लिए जेल की सजा का प्रावधान है। इससे लता एवं उस जैसी विचारधारा वाले लोगो के लिए काम करना और दूभर हो गया है। जेल जाने का खौफ उन्हें पथ से डिगा नही सकता है।