1. अरुणा आसफ अली – भारतीय स्वतंत्रता की लौह महिला
अरुणा आसफ अली की गिनती एक श्रेष्ठ स्वतंत्रता सेनानी के रुप में की जाती है, उन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जन्म वर्ष 1909 में पंजाब के कालका में हुआ था। वह देशभक्त एवं उग्र राष्ट्रवादी थीं, उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विभिन्न विरोध प्रदर्शनों और आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया। वह कांग्रेस पार्टी की सदस्य भी थीं और दिल्ली की पहली महिला मेयर भी बनी।
अरुणा ने नमक सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और विरोध प्रदर्शनों और सविनय अवज्ञा में शामिल होने के कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। भारत छोड़ो आंदोलन की प्रमुख नेताओँ में एक थी। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करना था।
वर्ष 1942 में, अरुणा ने अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का झंडा फहराया। इसके लिए उनको गिरफ्तार कर लिया गया और जेल में डाल दिया गया, लेकिन उनकी बहादुरी और साहस ने हजारों भारतीयों को आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
आज़ादी के बाद अरुणा 1996 में अपनी मृत्यु तक राजनीति और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल रहीं।
2. कमलादेवी चट्टोपाध्याय – भारतीय हस्तशिल्प की जननी
कमलादेवी चट्टोपाध्याय एक समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी और भारत के हस्तशिल्प आंदोलन की प्रेरणा स्रोत थीं। उनका जन्म वर्ष 1903 में मैंगलोर में हुआ था। कमलादेवी तत्कालीन भारतीय समाज की एक अग्रणी शख्सियत थीं और भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों की जबरदस्त समर्थक थी और भारतीय कला एवं संस्कृति के संरक्षण की वकालत करती थीं।
कमलादेवी चट्टोपाध्याय का जीवन
कमलादेवी विदेश में पढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिलाओं में से एक थीं और उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के बेडफोर्ड कॉलेज से सामाजिक कार्य में डिग्री हासिल की ।उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और विरोध प्रदर्शनों और सविनय अवज्ञा में भाग लेने के कारण उन्हें कई बार जेल की यात्रा भी करनी पड़ी ।
कमलादेवी ने अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका उद्देश्य भारतीय हस्तशिल्प को बढ़ावा देना और पारंपरिक कला रूपों को संरक्षित करना था।
वह लंदन में रॉयल सोसाइटी ऑफ आर्ट्स, लंदन की फेलो के रूप में चुनी जाने वाली पहली भारतीय महिला भी थीं।
भारतीय हस्तशिल्प को बढ़ावा देने और पारंपरिक कला रूपों को संरक्षित करने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किया। उनके कार्यों ने भारत की कई पीढ़ियों को प्रेरित किया।
3. आनंदीबाई गोपालराव जोशी – भारत की पहली महिला डॉक्टर
आनंदीबाई गोपालराव जोशी पश्चिमी चिकित्सा में डिग्री हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला थीं। उनका जन्म 1865 में महाराष्ट्र में हुआ था और कम उम्र में उनकी शादी हो गई थी, उनको अपनी शिक्षा एवं करियर को आगे बढ़ाने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
आनंदीबाई गोपालराव जोशी का जीवन
आनंदीबाई की चिकित्सा क्षेत्र में रुचि तब शुरू हुई जब उचित चिकित्सकीय देखभाल की कमी के कारण उन्होंने अपना पहला बच्चा खो दिया। उनके पति ने उन्हें डॉक्टर की शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित किया और अंततः पेन्सिलवेनिया के महिला मेडिकल कॉलेज में उन्होनें दाखिला लिया।
अपनी पढ़ाई के दौरान आनंदीबाई को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें भाषा की बाधा और सांस्कृतिक मतभेद भी शामिल थे, लेकिन उन्होंने दृढ़ निश्चय के साथ अपनी शिक्षा ज़ारी रखी और 1886 में चिकित्सा में डिग्री के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
भारत लौटने के बाद, आनंदीबाई को कोल्हापुर के अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल के महिला वार्ड के प्रभारी चिकित्सक के रूप में नियुक्त किया गया। 21 वर्ष की अल्पायु में ही तपेदिक की वजह से उनकी मृत्यु हो गई लेकिन उनका दृढ़ निश्चय एवं चिकित्सा के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियाँ भारत और दुनिया भर में महिलाओं के लिए प्रेरणा.
4. असीमा चटर्जी – अग्रणी वैज्ञानिक
असीमा चटर्जी एक अग्रणी भारतीय रसायनज्ञ थीं जिन्होंने कार्बनिक रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया। 1917 में बंगाल में जन्मी असीमा भारतीय विश्वविद्यालय से विज्ञान में पीएचडी हासिल करने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं।
असीमा चटर्जी का जीवन
असीमा चटर्जी पेड़ पौधों पर खोज के लिए प्रसिद्ध हैं उन्होंने पेड़ो के औषधीय गुणों का गहन अध्यन किया और पौधो के संभावित चिकित्सीय उपयोग के लिए कई नए यौगिकों की खोज की। वह कलकत्ता विश्वविद्यालय में एक विभाग के प्रमुख के रूप में नियुक्त होने वाली पहली महिला थीं और भारतीय संसद के ऊपरी सदन, राज्य सभा की सदस्य भी थीं। कार्बनिक रसायन विज्ञान के क्षेत्र में असीमा के अग्रणी काम ने उन्हें 1975 में प्रतिष्ठित पद्म भूषण पुरस्कार प्राप्त हुआ रसायन विज्ञान के क्षेत्र में उनको कई पुरस्कार एवं प्रश्स्ति पत्र मिले। उनकी विरासत भारत और दुनिया भर के वैज्ञानिकों की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
5. रुखमाबाई राउत – महिलाओं के अधिकारों की वकील
रुखमाबाई राउत एक अग्रणी भारतीय चिकित्सक और समाज सुधारक थीं, जिन्होंने उस समय महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता के लिए लड़ाई लड़ी थी, जब महिलाओं को शिक्षा के भी उचित अवसर प्राप्त नहीं थे। उनका जन्म 1864 में मुंबई में हुआ। रुखमाबाई को अपनी शिक्षा और करियर को आगे बढ़ाने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
रुखमाबाई राउत का जीवन
रुखमाबाई जब महज नौ साल की थी तब उनके एक करीबी महिला रिश्तेदार की मृत्यु उचित चिक्तसकीय सहायता प्राप्त नहीं होने की वजह से हुई। इस घटना ने उन्हें चिक्तिसा क्षेत्र की तरफ आकर्षित किया। वह लंदन स्कूल ऑफ मेडिसिन फॉर वुमेन में मेडिसिन की डिग्री हासिल करने वाली पहली भारतीय महिलाओं में से एक थी।
रुखमाबाई महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता की प्रखर समर्थक थी। और उन्होंने बाल विवाह और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ बोलने के लिए एक चिकित्सक के रूप में अपने मंच का इस्तेमाल किया। महिलाओं के अधिकारों के लिए उनका अभूतपूर्व कार्य और वकालत भारत और दुनिया भर में महिलाओं की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती है।