दुनिया का आलम यह है कि हाशिये पर खड़े लोगो की कोई सुध नही लेता है। अन्नया पॉल डोडमानी लीक से हटकर चलने वाली महिला है। उन्होने असम और कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले के आदिवासियो के बीच शिक्षा का प्रसार किया। 2019 में प्रतिष्ठित कर्मवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उन्होने अपने अभियान की शुरुआत बरगद के पेड़ की छाया में आदिवासी बच्चों के लिए पढ़ाने की कक्षायें आयोजित की। आज अब पूरे देश में आदिवासी क्षेत्रों में फैले 160 शिक्षा केंद्रों के नेटवर्क में विकसित हो गया है। अनन्या के संगठन, ट्राइबल कनेक्ट का प्रभाव उन 700 समर्पित स्वयंसेवकों के माध्यम से महसूस किया जाता है जो इन हाशिए पर रहने वाले समुदायों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए अथक प्रयास करते हैं। इसके अलावा, अनन्या का स्वास्थ्य जागरूकता अभियान सफलतापूर्वक साठ हजार से अधिक आदिवासी महिलाओं तक पहुंच गया है, और उन्हें महत्वपूर्ण ज्ञान के साथ सशक्त किया गया। अन्नया यहीं पर नही रुकी उन्होंने आदिवासी बच्चों के लिए अपना दिल और घर खोल दिया है जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है।
हालाँकि, बदलाव लाने की राह कभी आसान नहीं होती। अनन्या को अपने पूरे सफर में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। एक बार उन पर गंभीर हमला हुआ, जिससे वह बुरी तरह घायल हो गईं। लेकिन वह जनजातीय समुदायों के उत्थान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में अटल और दृढ़ रहीं। उनका विश्वास ही उन्हें आगे बड़ते रहने में मदद करता है।
दरअसल उनके स्कूली दिनों की एक घटना ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया, उनहोंने पाया कि उनकी आदिवासी सहपाठियां गर्मियों की छुट्टी में घर जाती थी फिर कभी वापस नहीं आती थी। यही नहीं, इन आदिवासी लड़कियों को स्कूल में मलेरिया के फैलाव के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता था। बार बार जब इस प्रकार की घटनाएं घटने लगी तो अन्नया ने इस स्थिति में बदलाव लाने की ठानी। यही बदलाव की प्रेरणा उनका मार्गदर्शन करती रहीं। पूर्वोत्तर भारत की जनजातीय समाज में व्यक्तियों की जीवन कठिनाईयों से भरा रहता है। इस समाज में अशिक्षा व्याप्त है और इनका शोषण कई प्रकार से किया जाता है। इन आदिवासी लोगो की दशा को समझने वाले बहुत कम होते है और जो इनकी दशा को समझता है और इनको इस दशा से बाहर निकालने का प्रयास करता है तो ये लोग पूरे दिलो दिमाग से उसका साथ देते है। कुछ ऐसी परिस्तिथियों में अनन्या पॉल डोडमानी ने अपना प्रयास शुरु किया। असम के लुमडिंग में एक बंगाली परिवार में जन्मी अनन्या आदिवासी पड़ोसियों के बीच पली-बढ़ीं। कम उम्र से ही, उन्होंने पाया कि आदिवासी समाज छल और कपट से कोसों दूर है और वह ईमानदारी एवं अटूट प्रतिबद्धता से आदिवासी महिलाओं के उत्थान के कार्य में लग गई।
अपने बचपन के दिनों में उसने जो भयानक असमानताएँ और मौतें देखीं, उसने उसकी अंतरात्मा को कचोट दिया। एहसास का एक क्षण तब आया जब वह अपनी घरेलू सहायिका के साथ एक दुकान पर गई और वहां पहले से मौजूद एक बुजुर्ग आदिवासी महिला को देखा। दुकानदार ने महिला की अशिक्षा का फायदा उठाते हुए उससे एक वस्तु की दोगुनी कीमत वसूल की और आसानी से पैसे अपने पास रख लिए। इस अन्यायपूर्ण कृत्य ने अनन्या को अंदर तक झकझोर दिया।
उस छोटी उम्र में, उन्होंने आदिवासी बच्चों को पैसे का मूल्य सिखाने, पढ़ने-लिखने का तरीका सिखाने और उन्हें दुकान के संकेतों से परिचित कराने का संकल्प लिया। और इसलिए, भटकते छोटे बच्चों के लिए कहानियों से लैस, अनन्या ने उन्हें बुनियादी शिक्षा प्रदान करना शुरू कर दिया। उनके इस नेक काम में उनके स्कूल के सहपाठियों ने भी उनका साथ देना शुरु कर दिया और हर सप्ताहांत, भावुक किशोरों का यह समूह ज्ञान का उपहार देने के लिए आदिवासी गांवों में जाता था।
12वीं कक्षा पूरी करने के बाद अनन्या आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता आ गईं। इसी दौरान एक जीवन-परिवर्तनकारी घटना घटी। 2002 में उनके पिता का आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था। कई दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया, उन्हें अकल्पनीय यातनाएं सहनी पड़ीं, जबकि बंधक बनाने वालों ने उनके व्यापारिक साझेदार से फिरौती की मांग की। भारी बारिश और अपहरणकर्ताओं के नशे की हालत में, किस्मत के झटके से, अनन्या के पिता उनके चंगुल से भागने में सफल रहे।
इस दर्दनाक घटना ने पूरे परिवार को अंदर तक झकझोर कर रख दिया। जिज्ञासा और ऐसे कृत्यों के पीछे की प्रेरणा को समझने की इच्छा से प्रेरित होकर, अनन्या ने उन लोगों के बीच शिक्षा फैलाने का संकल्प लिया जो अपराध की ओर मुड़ गए थे। अनन्या अब कोलकाता विश्वविद्यालय में आपराधिक मनोविज्ञान की छात्रा थी उनका मानना था कि इस प्रकार से अपराध की दुनिया में गयो लोगो को शिक्षित करने से, आने वाली पीढ़ियाँ जीविकोपार्जन और बेहतर जीवन जीने के लिए सही जीवन मार्ग अपनायेंगे।
उनकी यह परिवर्तनकारी यात्रा उसी गाँव से शुरू हुई जहाँ उनके पिता को कैद का सामना करना पड़ा था। यह वर्ष 2003 था, और सीमित संसाधनों के साथ, उन्होंने ग्रामीणों के साथ अपनी योजना पर चर्चा की, उनके समर्थन की उम्मीद की। दुर्भाग्य से, वे सहयोग करने में झिझक रहे थे। बिना किसी डर के, अनन्या ने गाँव में एक भव्य बरगद के पेड़ के नीचे अपना अध्ययन केंद्र स्थापित किया, जिसकी शुरुआत सिर्फ पाँच उत्सुक बच्चों से हुई। सौभाग्य से, उनके जीवन साथी, एक दक्षिण भारतीय व्यक्ति, जो आदिवासी उत्थान के बारे में गहराई से भावुक थे, ने उनके दृष्टिकोण को साझा किया। 2005 में अपनी शादी के बाद, अनन्या हुबली, कर्नाटक में स्थानांतरित हो गईं, लेकिन आदिवासी सशक्तीकरण के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता की वजह से उनहोने उत्तर कन्नड़ को बदलाव के लिए अपना नया क्षेत्र चुना।
अनन्या पॉल डोडमानी की यात्रा लचीलेपन, सहानुभूति और अटूट दृढ़ संकल्प में से एक है। बरगद के पेड़ की छाया से लेकर हजारों आदिवासी समुदायों के दिलों तक, उन्होंने अंधेरे में डूबे लोगों को रोशनी दी है। उनका उल्लेखनीय कार्य हमें याद दिलाता है कि परिवर्तन की अलख जगाने और हाशिये पर पड़े समुदायों के उत्थान के लिए केवल एक व्यक्ति को शुरुआती कदन उठाने की आवश्यकता होती है। हर जीत के साथ, अनन्या की अभी तक की यात्रा यह साबित करती है कि दृढ़ निश्चय, अटूट लगन से व्यक्ति अपने रास्ते में आगे बड़ सकता है और धीरे धीरे समाज में उनके विरोधी भी उनके अनुयायी हो जाते है।