वेश भूसा से वह एक सामान्य ग्रहणी लगती हैं और यह आभास होता है कि वह किसी ग्रामीण क्षेत्र से संबंध रखती हैं। सोबिता तामुली को देखकर अधिकतर इस प्रकार का भ्रम होता है। लेकिन हकीकत में वह असम के स्थानीय बाजारों में दो प्रमुख ब्रांडो की मालकिन है। व्यवसाय हर किसी के बस की बात नहीं है। इसमें बहुत अधिक समर्पण, लगन, कड़ी मेहनत और समय लगता है। सोबिता तामुली ने अपनी कठिन मेहनत, लगन एवं सर्मपण से यह मुकाम हासिल किया है।
विशेषताएं
सोबिता तामुली की प्रेरक यात्रा
सेउजी खाद: जैविक खाद
जापी: असम का सांस्कृतिक प्रतीक
काम में सोबिता तामुली की विशिष्टता
सोबिता तामुली की प्रेरक यात्रा
अपने बचपन में सोबिता तामुली अपने ही विचारों में खोई रहती थीं और सपने देखना उसकी आदत थी या यूं कहें कि विचार और सपने छोटी सोबिता के सबसे अच्छे दोस्त थे। यही चीज उसे उसके आसपास के अन्य लोगों से अलग करती थी। वह प्रतिदिन किसी न किसी विचार में खोई रहती थी लेकिन शाम होते होते उसके वह विचार हवा में उड़ जाते हैं। लेकिन 2002 में अठारह वर्ष में प्रवेश करते ही उसके जीवन में नया मोड़ आ गया। इसके लिए उसने अपने कई विचारों में से एक विचार को आगे बढ़ाने एवं प्रसिद्ध ब्रांड बनाने का फैसला किया। तब इस बात की कल्पना नहीं की जा सकती थी कि एक साधारण पृष्ठभूमि की एक लड़की उद्यमी बनने की कोशिश करेगी।
उन्होंने अपने गांव की महिलाओं के एक छोटे समूह के साथ अपने घर में ही जैविक खाद बनाने का व्यवसाय शुरू किया। उनकी जैविक खाद तैयार करना काफी सरल लेकिन बहुत प्रभावी है। खाद में उपयोग की जाने वाली अधिकांश सामग्री गाँवों या आस–पास के क्षेत्रों में पाई जा सकती है और साथ ही यह आर्थिक रूप से सस्ती भी है। इसमें गाय का गोबर, केले का पौधा, केंचुए, खार और गिरी हुई पत्तियाँ जैसी वस्तुएँ शामिल थीं। जैविक खाद के इस ब्रांड की मांग दिन–ब–दिन बढ़ती जा रही है क्योंकि आजकल, लोग स्वास्थ्य और स्वस्थ भोजन के प्रति अधिक जागरूक हो गए हैं। इसी कारण केसुहार या केंचुआ खाद नाम से जैविक खाद का ब्रांड अपने चरम पर है। इसके अलावा, सोबिता के स्वयं सहायता समूह ‘सेउजी‘ के माध्यम से इस ब्रांड की खाद को केवल 50 रुपये प्रति 5 किलोग्राम पैकेट पर ऑर्डर करना बहुत आसान है।
जापी: असम का सांस्कृतिक प्रतीक
जैविक खाद बनाने के चल रहे व्यवसाय के साथ सोबिता अपने व्यवसाय को विभिन्न क्षेत्रों में भी फैलाना चाहती थीं। उसके दृढ़ संकल्प और दृढ़ता ने उसके और उसके व्यवसाय के लिए नए अवसर प्रदान किये। सोबिता का समूह अब पारंपरिक जापियाँ बनाने में लग गया है। दरअसल, जैपिस असम की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। वे चौड़े किनारों वाली शंक्वाकार पारंपरिक टोपियाँ हैं, जो न केवल सिर पर बल्कि सजावट की वस्तु के रूप में भी बहुत सुंदर लगती हैं।
हमने बिचौलियों पर भरोसा करने के बजाय खुद ही बिक्री करना समझदारी समझी। साथ ही, हमारा मुख्य उद्देश्य हमारे जैसे छोटे बाजारों में आगंतुकों को आकर्षित करना है, न कि इसके विपरीत
समूह न केवल पारंपरिक शैली की जापी बनाता है, बल्कि वे इसे ग्राहकों या किसी संगठन की मांग के अनुसार बदलाव भी करते हैं। एक बार उत्पाद तैयार हो जाने पर समूह बिचौलियों से बचने के लिए इसे पड़ोसी बाजारों में या सीधे ग्राहक के यहां बेच देता है। जब सोबिता से इस सिस्टम के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘बिचौलियों पर भरोसा करने के बजाय हमने खुद ही बिक्री करना समझदारी समझी। क्योंकि वह बड़े बाजारों की चकाचौंध से दूर स्थानीय बाजारों को तरजीह देती है । उन्हें लगता है कि इस तरह से न केवल उनके समूह के सदस्यों को बल्कि पूरे समुदाय को फायदा हो सकता है।
काम में सोबिता की विशिष्टता
सोबिता समय की बहुत पाबंद है। इसके अलावा वह केवल एक या दो क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहना चाहती है। उसके पास कई योजनाएँ है। वह एक कट्टर व्यवसायी महिला हैं जो सिर्फ इन दो सफल उद्यमों से संतुष्ट नहीं हैं और वह नये क्षेत्रों मे भी पैर पसार रही है। अब वह अगरबत्ती बनाने की कला सीख रही हैं। शायद ज्यादा समय नहीं लगेगा जब सोबिता की अगरबत्तियों की मीठी खुशबू हमारे घरों तक पहुंचेगी। उन्होंने कहा कि एक दशक पहले जब मैंने शुरुआत की थी तो मेरे लिए शायद ही कोई प्रोत्साहन था। अब, चीजें अलग हैं. पूरा गाँव जैविक खाद और जापी व्यवसाय से जुड़ा हुआ है। उन्होंने महसूस किया है कि कैसे छोटे–छोटे विचारों में भी संभावनाएँ जीवित रहती हैं और अपनी मंजिल प्राप्त की जा सकती है।
उन्होनें ग्रामीण इलाकों से आने वाले उद्यमीयों के लिए एक नया रास्ता खोल दिया है। वह छोटे से गांव में उद्यमिता लेकर आईं और अपने सरल विचारों को प्रमुख ब्रांडों में बदल दिया। आशा की जाती है कि भारतीय गांवों में सोबिता तामुली जैसे अधिक से अधिक लौह–इच्छाशक्ति वाले, जिद्दी उद्यमी हों।