माननीय मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी के नेतृत्व में उत्तराखंड महिला सशक्तिकरण की दशा और दिशा बदल रही है। राज्य सरकार की नीतियों और उनके द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों के कारण उत्तराखंड राज्य में महिला सशक्तिकरण को नया आयाम मिल रहा है। माननीय मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी की दूरदर्शिता और उत्तराखंड समाज की उनकी गहरी समझ ने इन नीतियों के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
वास्तव में महिलाएं उत्तराखंड समाज की धुरी हैं। घर चलाने की जिम्मेदारी महिलाओं की होती है। खासकर पहाड़ी क्षेत्र में महिलाएं घर का सारा काम करती हैं। पहाड़ी समाज की गहरी जानकारी के कारण महिला सशक्तिकरण के लिए बनाए गए कार्यक्रमों में महिलाओं की इस दयनीय स्थिति को ध्यान में रखा गया है। उत्तराखंड बनने के साथ ही महिला सशक्तिकरण के लिए जरूरी कदम उठाए गए, लेकिन सरकार ने इन कार्यक्रमों को नया आयाम धामी जी को दिया।
माननीय मुख्यमंत्री ने उत्तराखंड की सभी महिलाओं के उत्थान के लिए कदम उठाए हैं। पहाड़ की महिलाओं, अनुसूचित जाति एवं जनजाति की महिलाओं, उत्तराखंड के शहरों में रहने वाली कामकाजी महिलाओं और अल्पसंख्यक समाज की महिलाओं की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए अनेक कार्यक्रम तैयार किए गए हैं। महिला सशक्तिकरण के लिए केंद्र सरकार की योजनाओं का समुचित क्रियान्वयन भी राज्य में प्राथमिकता के तौर पर किया जा रहा है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड में महिलाओं की जनसंख्या 49.06 प्रतिशत है। पर्यावरण और पारिस्थितिकी मुद्दों पर उत्तराखंड की महिलाओं ने अग्रणी भूमिका निभाई है। औपचारिक शिक्षा कभी भी उनके आड़े नहीं आई, क्योंकि महिलाएं अपने पर्यावरण से प्रभावित होती हैं और वे भलीभांति जानती हैं कि यदि उनके पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया गया तो उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। महिलाओं का सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण महिला सशक्तिकरण के केंद्र में है।
आर्थिक सशक्तिकरण के अभाव में महिलाएं समाज और परिवार में उचित भूमिका नहीं निभा सकती हैं। धामी सरकार का मूल मंत्र समाज के हर वर्ग की महिलाओं को प्रोत्साहित करना रहा है। महिलाओं के उत्थान के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों के मूल में यही भावना निहित है।
सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण महिला सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित हो रहा है। पूरे राज्य में स्नातक और परास्नातक छात्र इस आरक्षण का लाभ लेने के लिए उत्साहित हैं। इतना ही नहीं, वर्तमान सरकार ने स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की हैं।
महिला सशक्तिकरण को और मजबूत करने के लिए, माननीय मुख्यमंत्री धामी जी ने सहकारी समितियों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की हैं। शिक्षा सशक्तिकरण की पहली सीढ़ी है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, माननीय मुख्यमंत्री ने छात्राओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया है। गरीब और असहाय छात्राओं को शिक्षा प्रदान करने के लिए, राज्य सरकार ने नंदा गौरी योजना के तहत कई कार्यक्रम चलाए हैं। इसके तहत लड़की के जन्म पर 12,000 / – रुपये और बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण करने पर 51,000 / – रुपये दिए जाते हैं।
मुख्यमंत्री महा लक्ष्मी किट योजना के तहत, लड़की के जन्म पर पौष्टिक भोजन और अन्य सहायता प्रदान की जाती है। जननी शिक्षा सुरक्षा कार्यक्रम के तहत गर्भवती महिलाओं और प्रशिक्षुओं की सुरक्षा के लिए सरकारी सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।
इसी तरह उत्तराखंड एकीकृत विकास योजना के तहत महिलाओं को कौशल विकास और आर्थिक विकास के अवसर प्रदान किए जाते हैं। स्वधन योजना के तहत महिलाओं को कठिन परिस्थितियों में सहायता प्रदान की जाती है। और कानूनी सहायता भी प्रदान की जाती है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत गरीब महिलाओं को गैस सिलेंडर और रसोई गैस मुफ्त में वितरित की जाती है। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में गरीब और असहाय लड़कियों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाती है।
परिवार और समाज में महिलाओं की भूमिका को मजबूत करने के लिए राज्य सरकार महिलाओं को घर और अन्य संपत्ति खरीदने पर स्टांप ड्यूटी में रियायत देती है। राज्य सरकार ने वर्ष 2022 में लखपति दीदी का शुभारंभ किया। इसके लिए महिला स्वयं सहायता समूह को एक लाख तक की आर्थिक सहायता दी जाती है। इस योजना के तहत करीब एक लाख महिलाएं लखपति बन चुकी हैं।
इतना ही नहीं महिलाओं में स्वरोजगार बढ़ाने के लिए 5 लाख रुपये का ब्याज मुक्त ऋण दिया जा रहा है ताकि महिलाएं स्वरोजगार के क्षेत्र में अपने पैर पसार सकें। मुख्यमंत्री सशक्त बहना उत्सव योजना का उद्देश्य पूरे राज्य की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है। गरीब ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बकरी पालन के तहत वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
राज्य स्त्री शक्ति तीलू रौतेली पुरस्कार समाज में महिलाओं के योगदान को मान्यता देने के लिए दिया जाता है। यह पुरस्कार वीरांगना तीलू रौतेली के जन्मदिन पर दिया जाता है। इसके तहत 51,000/- रुपये की धनराशि, स्मृति चिह्न और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को दिया जाता है।
महिला दिवस के अवसर पर उत्तराखंड सरकार ने राज्य में सारथी नामक नई पहल की शुरुआत की है। इस योजना का उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है। इसके लिए सरकार ने 10 ई-स्कूटी उपलब्ध कराई हैं। फिलहाल इन महिला चालकों को परिवहन विभाग की ओर से विशेष ड्राइविंग प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्हें लाइसेंस और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे। योजना का उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और सार्वजनिक परिवहन में उनकी भागीदारी बढ़ाना है।
यह योजना छह महीने तक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चलेगी और उसके बाद इसे राज्य के अन्य शहरों में भी लागू किया जाएगा। योजना के सुचारू संचालन और महिला चालकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए परिवहन विभाग और पुलिस विभाग को भी इस पहल में शामिल किया गया है। सभी वाहनों में जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम लगाया गया है, जिससे वाहन की लोकेशन पर नजर रखी जा सकेगी। किसी भी आपात स्थिति में तत्काल सहायता उपलब्ध कराने के लिए हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया जाएगा।
इस परियोजना के तहत महिलाओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए एक विशेष मोबाइल ऐप विकसित किया गया है, जिसके जरिए महिलाएं आसानी से इन वाहनों की बुकिंग कर सकेंगी। यह ऐप उन कमर्शियल ऐप की तरह काम करेगा जो ओला और उबर जैसी कैब सेवाओं के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। ऐप के जरिए महिलाओं को सुरक्षित और सुविधाजनक यात्रा का अनुभव मिलेगा।
सरकार का यह प्रयास महिलाओं को सार्वजनिक परिवहन में सुरक्षित और आरामदायक यात्रा का अनुभव देने के साथ-साथ उन्हें रोजगार के नए अवसर प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनेगा। महिला सारथी योजना के माध्यम से समाज में महिला ड्राइवरों की भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा और वे आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेंगी। आने वाले समय में अगर यह पायलट प्रोजेक्ट सफल रहा तो इसे उत्तराखंड के अन्य शहरों में भी लागू किया जाएगा, ताकि पूरे राज्य की महिलाओं को इसका लाभ मिल सके।
उत्तराखंड सरकार ने 27 जनवरी 2025 को ऐतिहासिक समान नागरिक संहिता अधिनियम पारित किया। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने सही कहा है कि समान नागरिक संहिता भेदभाव को समाप्त करने के लिए एक संवैधानिक उपाय है। इसका बीज मंत्र लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और व्यक्तिगत अधिकारों को संरक्षण प्रदान करना है। इसके तहत विवाह की आयु तय की गई है और विवाह का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है और इस प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता बढ़ गई है। सभी नागरिकों को समान अधिकार देने का प्रयास किया गया है। राज्य में अब सभी धर्मों के लिए बहुविवाह पर रोक लगा दी गई है और बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में समान अधिकार दिए गए हैं।
दरअसल, इस संहिता से हलाला, बहुविवाह, बाल विवाह, तीन तलाक आदि कुरीतियों पर पूरी तरह रोक लग सकेगी। वैसे, अगर अनुसूचित जनजातियों को इस संहिता से बाहर रखा गया है, तो इसके पीछे भारतीय उदारता को समझा जा सकता है। हालांकि, समय के साथ अनुसूचित जनजातियों में जागरूकता बढ़ी है और वहां एक से अधिक बार शादी करने वालों की संख्या में कमी आई है। लोग अब यह समझने लगे हैं कि आज हमें बड़े परिवारों की नहीं, बल्कि खुशहाल परिवारों की जरूरत है।
जाहिर है, यह संहिता देश के बाकी राज्यों को भी सीखने और सोचने के लिए प्रेरित करेगी। देश में आधा दर्जन राज्य ऐसे हैं, जहां किसी न किसी स्तर पर समान नागरिक संहिता बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
इस ऐतिहासिक कानून ने बहुविवाह, तीन तलाक और हलाला जैसी कुरीतियों को खत्म कर दिया है। इतना ही नहीं, इसके तहत महिलाओं को विरासत और संपत्ति के अधिकार में भी बराबर का हिस्सा दिया गया है। इसके चलते महिलाओं को समान अधिकार न देने वाले पुराने जमाने के कानून को खत्म कर दिया गया है और महिलाओं को कानूनी संरक्षण भी प्रदान किया गया है। उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू होना एक बहुत ही महत्वपूर्ण बदलाव है, जिस पर समाज में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं स्वाभाविक हैं। इस संहिता का न तो समर्थन आश्चर्यजनक है और न ही विरोध।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोमवार को समान नागरिक संहिता के तहत नियमों के बारे में विस्तार से बताया और अब नियमों की समीक्षा की जा रही है। ज्यादातर संविधान निर्माताओं का सपना था कि एक दिन देश में समान नागरिक संहिता पर आम सहमति बनेगी और उत्तराखंड ने इसकी शुरुआत कर दी है। संहिता में सभी धर्मों के विवाह, उत्तराधिकार, भरण-पोषण और अन्य नागरिक मामलों के लिए समान नियमों की परिकल्पना की गई है।
अब किसी भी धर्म के व्यक्ति को तब तक दूसरी शादी करने की इजाजत नहीं होगी, जब तक उसका जीवनसाथी जीवित है। वैसे हिंदुओं में भी एक से अधिक विवाह की इजाजत नहीं होगी। हालांकि हिंदुओं में भी कई विवाह करने वाले लोग हैं, लेकिन इस्लामी कानून को मानने वाले कुछ लोगों को यह संहिता अप्रिय लग सकती है।
वैसे अल्पसंख्यक समुदाय में भी ज्यादातर लोगों ने एकल विवाह किए हैं और उन पर इस संहिता का कोई असर नहीं पड़ेगा। वास्तव में, यह संहिता महिलाओं को न्याय दिलाने में सहायक होगी। जब कोई व्यक्ति कई विवाह करता है, तो सबसे अधिक उत्पीड़न महिलाओं का होता है। उनके अधिकार और संसाधन कम हो जाते हैं, इसलिए यह संहिता महिलाओं और बेटियों के लिए एक बड़ी जीत है। इस संहिता से महिलाओं को विशेष ताकत मिलेगी।
महिलाएं अपनी शादी को लेकर निश्चिंत होंगी। साथ ही लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को भी संपत्ति में बराबर का हक मिलेगा। शादी और उससे इतर रिश्तों के बदलते दौर में पूरे देश में ऐसे सुधारों की जरूरत महसूस की जा रही है, जिससे कहीं भी शोषण से बचा जा सके।