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भाजपा को हराना ही विपक्षीय गठबंधन का मूल उद्देश्य

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2024 लोक सभा चुनाव के लिए चुनाव प्रक्रिया शुरु हो चुकी है। 102 लोकसभा सीटों के लिए 19 अप्रैल 2024 को प्रथम चरण का मतदान होगा। अधिकतर बड़ी पार्टियों ने अपने घोषणा पत्र को हाल ही में जनता के सामने रखा। चुनाव में महिलाओं की बढ़ती भागेदारी के मद्देनज़र लगभग हर पार्टीं ने महिलाओं के उत्थान एवं समाज एवं राजनीति में सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए कई वादे किये हैं। भारतीय जनता पार्टी नें अपने संकल्प पत्र में मोदी सरकार के द्वारा महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए उठाए गए कदमों का हवाला दिया है। केन्द्र सरकार द्वारा पारित नारी शक्ति बदन अधिनियम का पूरा श्रेय पार्टी ने लिया है। इसके तहत लोकसभा और राज्य की विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गयी है। परन्तु यह अधिनियम 2029 लोकसभा चुनाव के लिए लागू होगा। इसमें भी एक शर्त है कि इससे पहले लोकसभा एवं राज्य विधान सभा की सीटों का परिसीमन किया जायेगा। इसके अलावा भाजपा ने लखपत दीदी योजना के तहत महिलाओं को पांच लाख रुपये की वित्तीय सहायता देने का भी वायदा किया है। मात्र बंदना योजना एवं उज्वला योजना के केन्द्र में भी महिलाओं का ही सशक्तिकरण है, परन्तु हाल ही में सम्पन्न हुए मध्य प्रदेश विधान सभा के लिए सम्पन्न हुए चुनाव में जिस तरह से लाडली वहन योजना को तरजीह दी गयी थी वैसी स्थिति अभी नहीं है।

कांग्रेस पार्टी ने भी अपने घोषणा पत्र में महिलाओं के लिए भाग्य लक्ष्मी योजना को प्रमुख स्थान दिया है इसके तहत प्रत्येक गरीब परिवार की महिलाओं को एक लाख रुपये प्रतिवर्ष आर्थिक सहायता के रुप में दिये जायेंगे। इसके अलावा सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध कराया जायेगा। कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने अपने चुनावी भाषणों में यह भी वायदा किया है कि वह 2025 से विधान सभा चुनावों में महिलाओं को 33 प्रतिशत सीट उपलब्ध करायेंगी। इसी प्रकार इसकी सहयोगी पार्टी समाजवादी पार्टी ने भी यह वायदा किया है कि सत्ता में आने पर वह 2029 तक इंतजार नहीं करेगी और दो साल के अन्दर लोकसभा एवं राज्य विधान सभाओं में महिलाओँ को 33 प्रतिशत आरक्षण देगी और इसके लिए वह परिसीमन का इंतजार नहीं करेगी। इसके अलावा समाजवादी पार्टी ने महिलाओं के विरुद्ध अत्याचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने का भी वायदा किया है तथा गरीब वर्ग की महिलाओँ को पांच हजार रुपये प्रतिमाह आर्थिक सहायता भी दी जायेगी।

राष्ट्रीय जनता दल भी महिला सशक्तिकरण के मुद्दे पर कांग्रेस के नक्से कदम पर चल रही है उसने भी वायदा किया है कि प्रतिवर्ष रक्षा बंधन के मौके पर गरीब महिला को आर्थिक सहायता प्रदान की जायेगी। इसके अलावा आर.जे.डी ने आगनवाड़ी एवं आशा महिला कार्यकर्ताओं का मानदेय भी दोगुना करने का वायदा किया है। इस पर तंज करते हुए जे.डी.यू के प्रवक्ता ने कहा कि इन सभी योजनाओं में लगभग 145500 करोड़ रुपयों की जरुरत पड़ेगी तो इन रुपयों की व्यवस्था आर.जे.डी कहां से करेगी, क्योंकि बिहार सरकार का सालाना बजट ही मात्र 211000 करोड़ रुपया होता है। जे.डी.यू का यह भी मानना है इस प्रकार की लोक लुभावन योजनाओं से महिलाओं का सशक्तिकरण संभव नहीं है और इस कारण जे.डी.यू वही वायदा करता है जिसको धरातल पर उतारा जा सके। जे.डी.यू ने महिला उद्यमियों के लिए 5 लाख की आर्थिक सहायता एवं 5 लाख ब्याज रहित ऋण देने का वायदा किया है । गौरतलब है कि जे.डी.यू ने अपने पुराने शासन काल में बिहार में छठी क्सास के लेकर स्नातन तक की छात्राओं को साईकिल मुहैया करायी थी और जे.डी.यू ने ही समूचे भारत में पंचायती राज संस्थानों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की थी। डी.एम.के ने प्रत्येक गरीब घर की महिलाओं को एक हजार रुपया प्रतिमाह सहायता देने का वायदा किया है जबकि आप पार्टी ने दिल्ली की 18 वर्षीय से ऊपर की महिलाओं को एक हजार रुपया प्रतिमाह देने की घोषणा की है।

चुनाव की सरगर्मियां बढ़ते ही कई मुद्दे गौरं होते जा रहें हैं। चुनावी सभाओं में अब स्थानीय मुद्दे हावी होते जा रहें है। अभी तक चुनाव के ऋण में भाजपा राम मंदिर का निर्माण, समाज नागरिक सहिंता, सी.ए.ए एवं राष्ट्रीय सुरक्षा पर ज्यादा ज़ोर दे रही है। यद्यपि भाजपा के वरिष्ठ नेता उनकी सरकार के द्वारा महिला सशक्तीकरण के लिए उठाए गए कदमों को भी जनता के सामने रख रहे हैं इसके विपरित लगभग सभी विपक्षीय पार्टियों का ज़ोर भाजपा नीति गठबंधन को सत्ता से बेदखल करने पर हैं इसके लिए यह पार्टियां भाजपा पर आरोप लगा रहीं हैं कि सत्ता में आने पर भाजपा संविधान का मुख्य स्वरुप बदल देगी, क्योंकि उनका मानना है कि भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है जबकि भाजपा विविधताओं को अहमियत नहीं देता है और एकरुपता पर ज़ोर देता है। इस बार के चुनाव में भी लगभग सभी पार्टियां पूर्व में हुए चुनाव की तरह ही जाति संप्रदाय आदि पर ज्यादा ध्यान दे रहें है और अपनी रणनीति भी इन्ही मुद्दों को ध्यान में रखकर तैयार कर रहें हैं। इस माहौल में महिलाओँ को एक अलग और स्वतंत्र वोट बैंक मानने की अवधारणा धीरे धीरे गौढ़ होती जा रही है।

विपक्षीय पार्टियां भाजपा नीति गठबंधन सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए एकमत हैं परन्तु कुछ मूलभूत मुद्दों पर इनके आपसी मतभेद इनके घोषणा पत्र से जग जाहिर हो गया है। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि विपक्षीय गठबंधन की सभी पार्टियां कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर आपस में बटी हुई हैं। जहां कांग्रेस और डी.एम.के पुरानी पेंशन योजना पर चुप है एस.पी., आर.जे.डी, माकपा एवं भाकपा इस योजना को लागू करने के पक्ष में है। इसी प्रकार कांग्रेस, समाजवादी पार्टी एवं आर.जे.डी सी.ए.ए पर चुप हैं तो डी.एम.के, माकपा एवं भाकपा सत्ता मिलने पर सी.ए.ए को रद्द करने के पक्षधर हैं। विपक्षीय पार्टियों का यह रवैया चुनाव के माहौल में और स्पष्ट होता जा रहा है।

निजी क्षेत्र में आरक्षण के मुद्दे पर भी विपक्षीय पार्टियों के घोषणा पत्र में अलग-अलग राय व्यक्त की गयी है। कांग्रेस पार्टी निजी शैंक्षिक संस्थानों में अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति एवं ओबीसी के लिए आरक्षण की पैरवी कर रही है परन्तु निजी क्षेत्र में नौकरियों में आरक्षण के मुद्दे पर यह चुप है। समाजवादी पार्टी निजी क्षेत्र में समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देने का पक्षधर है और डी.एम.के निजी क्षेत्र में साकारत्मक नीतियां लागू करने के पक्ष में है, जबकि माकपा एवं भाकपा निजी क्षेत्र की नौकरियों में अनुसूचित जाति- अनुसूचित जनजाति, ओबीसी एवं अक्षम लोगों के लिए आरक्षण लागू करने की पक्षधर है।

इसी प्रकार राज्यपाल की नियुक्ति एवं उसके अधिकार के बारे में भी विपक्षीय गठबंधन के बीच मतभेद है। जहां डीएमके, माकपा एवं भाकपा की राय है कि किसी भी राज्य का राज्यपाल की नियुक्ति संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से विचारविमर्श के बाद किया जाना चाहिए। यह पार्टियां राज्यपाल की नियुक्ति एवं उसके अधिकार संबधित धारा 356 को ही संविधान से हटाने के पक्षधर हैं जबकि कांग्रेस, सपा एवं आरजेडी ने इस मुद्दे पर चुपी साधी है। इसके विपरीत विपक्षीय गठबंधन की सभी पार्टिया जातिगत सर्वेक्षण एवं स्वामीनाथन आयोग की किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने एवं सेना के लिए अग्नि पथ योजना को बंद करने आदि मुद्दो पर एकमत है।

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