महिलाओं के बढ़ते कदम

a woman in a yellow dress shirt and a woman in a yellow dress

महिलायें आज हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं यहां तक कि जिन क्षेत्रों में कुछ समय पहले तक पुरुषों का ही विशेषाधिकार था, आज महिलायें उन क्षेत्रों में आगे बढ़ रही है। महिलाओं की इस बदलती भूमिका के लिए शिक्षा निःसंदेह जिम्मेदार है परन्तु यह कहना कि केवल शिक्षा की वजह से ही महिलायें समाज में आगे बढ़ रही है शत-प्रतिशत सही नही होगा। अशिक्षित महिलायें भी सदियों पुरानी बंदिशों को तोड़कर समाज में आगे बढ़ रही हैं। महिलाओं को आज रिक्शा चलाते हुए, ऑटो एवं टैक्सी चलाते हुए देखना आम बात हो गयी है। चाय के ढाबे से लेकर बड़े पाव की दूकाने महिलायें निडरता से चला रहीं हैं। यहां तक की जिस व्यवसाय में उनको देर रात तक काम करना पड़ता है, उसे भी अपना रही है। यहां तक की महिलायें बस से लेकर हवाई जहांज तक चला रही है।

स्कूली शिक्षा में तो छात्रायें बाजी मार रहीं है। सीबीएसई की परीक्षा में 18 टॉपर छात्रों में से 11 छात्रायें रही थीं। सीबीएसई की अध्यक्ष अनीता कनवाल ने उक्त जानकारी दी। उन्होंने यह भी कहा कि अक्षम श्रेणी के छात्रों में 36 छात्रों ने 95 प्रतिशत से ज्यादा अंक प्राप्त किये और इस श्रेणी की टौपर लवनया बालाकृष्णन गुड़गांव की रहने वाली है। इस परीक्षा में छात्राओं का सफलता का प्रतिशत लड़को से 9 प्रतिशत ज्यादा था। जहां लड़कियों की सफलता का प्रतिशत 88.70 था वहीं लड़को का प्रतिशत 79.4 था।

ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन के अनुसार 2021-22 के अकादमिक वर्ष में उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्राओं का 48 प्रतिशत रहा। पिछले 5 सालों में छात्राओँ का उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए नियमित बढ़ोतरी हुई। इस संस्थानों में छात्राओं की संख्या वर्ष 2020-21 में 2.01 करोड़ थी जो वर्ष 2021-22 में 2.07 करोड़ पहुंची, जबकि 2017 में छात्राओं की संख्या 1.74 करोड़ ही थी इसका सीधा मतलब यह हुआ कि 2017 की तुलना में छात्राओं की उपस्थिति में 18.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और छात्राओँ की संख्या पिछले पांच वर्षो में तीस लाख की बढ़ोतरी दर्ज की गयी, जबकि कुल छात्रों की संख्या 91 लाख बढ़ी इस प्रकार छात्राओं की संख्या में वृद्दि 55 प्रतिशत रही।

मुस्लिम महिलाओं ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काफी बढ़ोत्तरी की है। अकादमिक वर्ष 2015-16 की तुलना में 2019-20 में मुस्लिम महिलाओं की संख्या में 40 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है। इस दौरान, अनुसूचित जनजाति की छात्राओँ का बढ़ोत्तरी का प्रतिशत 38 रहा है जबकि ओबीसी श्रेणी की छात्राओं का प्रतिशत 30 रहा है, परन्तु सभी श्रेणी की छात्राओं की हिस्सेदारी का आंकलन करने पर एख दूसरा ही दृश्य सामने आता है। जहां मुस्लिम छात्राओँ एवं जनजाति की छात्राओं की संख्या में बढ़ोत्तरी तो हुई है परन्तु कुल

छात्राओं की संख्या में इनकी हिस्सेदारी मात्र 2.7 प्रतिशत एवं 2.8 प्रतिशत ही है जबकि अनुसूचित जाति की छात्राओँ की हिस्सेदारी 7.3 प्रतिशत है। पी डब्लूडी श्रेणी के छात्राओं की हिस्सेदारी मात्र .1 प्रतिशत है।

इसी प्रकार इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेनेजमेंट की कक्षाओं में मूलभूत बदलाव देखने को मिल रहा है। यहां के छात्र- छात्राओं में इंजीनियरिंग सनातकों की संख्या घट रही है, जो एक दशक पहले 90 प्रतिशत थी वह अब मात्र 66 प्रतिशत रह गयी है जबकि छात्राओं का प्रतिशत जो 20 वर्ष पहले मात्र 13 था अब 31 प्रतिशत पहुंच गया है।

मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में भी महिलायें पुरुषों से आगे निकल रहीं है। हमारे देश के सभी सरकारी एवं निजी मेडिकल कॉलेज में छात्राओं की संख्या छात्रों से ज्यादा है। लगभग 60 प्रतिशत छात्रायें मेडिकल की पढ़ाई कर रही है, जबकि छात्रों का प्रतिशत 40 ही है। शिक्षा मंत्रालय की एक रिर्पोट के अनुसार इस समय समूचे देश में दो लाख छात्रायें मेडिकल की शिक्षा ग्रहण कर रहीं है, जबकि छात्रों की संख्या 1.75 लाख है। यह भी एक तथ्य है कि महिलायें स्वास्थ्य क्षेत्र में कम वेतन वाली अधिकतर पदों पर विराजमान है। लगभग 80 प्रतिशत नर्स महिलायें हैं और आगनवाड़ी के क्षेत्र में इनका प्रतिशत 100 है । जहां तक नेतृत्व का सवाल है शीर्ष स्थानों पर महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र 18 प्रतिशत है। पूरे विश्व में महिलाओं की स्वास्थ्य क्षेत्र में शीर्ष स्थानों पर मात्र 5 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

खेलों में भारतीय महिलाओँ ने अपनी स्थिति में काफी सुधार किया है। पहलवानी जैसे खेल में महिलाओं ने ऑलम्पिक एवं एशियन गेम्स में पदक हासिल किये है, और अपने देश का नाम ऊंचा किया है। क्रिकेट एवं हॉकि में भी महिलाओं ने देश का नाम रौशन किया है। भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने महिला क्रिकेटरों का वेतन पुरुष क्रिकेट खिलाड़ी के बराबर कर दिया है। क्रिकेट में आईपीएल की तर्ज पर डब्लयू पीएल का आग़ाज हो चुका है। यह दीगर बात है कि महिला क्रिकेट खिलाड़ियों को अपने समकक्ष पुरुष खिलाड़ियों की तुलना में विज्ञापन कम मिलते हैं।

विमानन क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी सफलता के झंडे गाड़ दिये है। भारत में महिला पायलटो की हिस्सेदारी समूचे विश्व में सबसे ज्यादा है। महिला पायलटों का प्रतिशत हमारे देश में 15 प्रतिशत है जबकि अमेरिका जैसे विकसित देश में महिला पायलटो की हिस्सेदारी मात्र 5 प्रतिशत है। जबकि ब्रिटेन में इनकी हिस्सेदारी मात्र 4.7 प्रतिशत है। अभी स्थिति यह है कि पायलट प्रशिक्षण के लिए नामित प्रशिक्षार्थी महिला पायलटो का प्रतिशत 18.1 प्रतिशत है, जो वर्ष 2022 की तुलना में 22.5 प्रतिशत ज्यादा है। भारतीय विमानन क्षेत्र में सूचीबद्ध एअरलाइंस में कार्यरत कर्मचारियों में महिला कर्मचारियों की विभिन्न श्रेणी में 14 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

आज विमानन क्षेत्र में पूरा परिदृश्य बदल चुका है। पहले उच्च मध्यम श्रेणी की महिलायें ही एअरलाइन्स में कार्य करने के बारे में सोच सकती थी, और उन्हें भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। निवेदिता भसीन सबसे कम उम्र में 1989 में पहली व्यावसायिक पायलट बनी थी। अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि जब वह हवाई जहाज चलाने के लिए जाती थी तो उनके पुरुष सहयोगी उनसे कहते थे कि जल्दी से काकपिट में जाओँ जिससे कि लोग डरें नहीं क्योंकि महिला पायलट के बारे में जानने पर लोग डरेंगे लेकिन अब माहौल बदल गया है। आज लोगो को जब पता चलता है कि जहाज की पायलट है तो वे ज्यादा आश्वस्त हो जाते हैं और मानते है कि महिला ढंग से जहाज चलायेगी।

महिला पायलट सुश्री जोया अग्रवाल ने हाल ही में इंडियन एअरलाइंस का जहाज सैनफ्रांसिस्को से बंगलूरु तक नॉनस्टाप उड़ान भरी और उनके साथ सभी अन्य पायलट भी महिलायें ही थी। उनके इस कदम की चर्चा समूचे विश्व में हुई मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय महिलायें अपने काम में ज्यादा ध्यान दे सकती है। उनकों घर परिवार की चिंता नही रहती है, क्योंकि घर परिवार को संभालने के लिए घर में मां-बाप, दादा-दादी या नाना-नानी में से कोई न कोई यह जिम्मेदारी निभाता है।

महिलायें भारतीय समाज के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। भारतीय परिवार का स्वरुप महिलाओं के आगे बढ़ने में अहम भूमिका निभा रहा है क्योंकि यदि महिलाओं को अपने कार्यालयों में ज्यादा समय देना होता है तो उन्हें अपने बच्चों के बारे में ज्यादा नहीं सोचना पड़ता है क्योंकि घर में उनके मां-बाप या सास ससुर बच्चों की देखरेख के लिए होते है। इस कारण उन्हें अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती है

Follow us

Related Stories

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *