एक बार की बात है, एक घने जंगल में एक चालाक लोमड़ी रहा करती थी। यह जंगल बहुत बड़ा था और इसमें तरह-तरह के जानवर रहते थे। गर्मियों के दिनों में, जब धूप तेज होती और खाने की कमी हो जाती, तो जानवरों को भोजन की तलाश में भटकना पड़ता। ऐसे ही एक गर्म दिन, वह लोमड़ी भी भूख से परेशान होकर जंगल में इधर-उधर भटक रही थी।
चलते-चलते लोमड़ी को एक छोटा सा खरगोश दिखाई दिया। लेकिन लोमड़ी ने सोचा, “यह तो बहुत छोटा है, इसे खाने से मेरा पेट नहीं भरेगा।” इसलिए उसने खरगोश को छोड़ दिया और आगे बढ़ गई। वह सोच रही थी कि शायद उसे कोई बड़ा जानवर मिल जाए, जिसे खाकर वह अपनी भूख मिटा सके।
थोड़ी देर बाद, लोमड़ी को एक हिरण दिखाई दिया। हिरण को देखते ही लोमड़ी के मुँह में पानी आ गया। वह तुरंत हिरण के पीछे भागी, लेकिन हिरण बहुत तेज था और लोमड़ी की पकड़ से बच निकला। लोमड़ी ने बहुत कोशिश की, पर हिरण उससे बहुत आगे निकल गया।
अब लोमड़ी थक चुकी थी और उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। वह सोचने लगी, “मैंने उस छोटे खरगोश को क्यों छोड़ दिया? अगर उसे खा लिया होता तो कम से कम मेरी भूख तो मिट जाती।” इस विचार के साथ वह फिर से खरगोश को ढूंढने निकल पड़ी।
लोमड़ी उसी जगह पहुँची जहाँ उसने खरगोश को देखा था, लेकिन अब वहां कोई खरगोश नहीं था। थकी हुई और निराश, लोमड़ी को अपनी गुफा में वापस जाना पड़ा। कई दिनों तक वह भूखी रही, और जब उसे खाना मिला, तब तक बहुत समय बीत चुका था।
कहानी की सीख: इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। जो कुछ भी हमारे पास है, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए। लालच करने से अंत में हमें नुकसान ही होता है, क्योंकि जैसा कि कहा जाता है, “लालच बुरी बला है।”