एक घने जंगल में एक चतुर लोमड़ी और एक धीमा लेकिन समझदार कछुआ रहते थे। वे दोनों अच्छे दोस्त थे, लेकिन लोमड़ी हमेशा अपनी चतुराई और कछुए की धीमी चाल का मजाक उड़ाती थी।
एक दिन, लोमड़ी ने कछुए से कहा, “कछुए भाई, तुम्हारी चाल तो बहुत धीमी है। तुमसे तो मैं बहुत आगे हूँ। चलो, आज हम दौड़ लगाते हैं।” कछुआ जानता था कि वह दौड़ में लोमड़ी को हरा नहीं सकता, लेकिन उसने चुनौती स्वीकार कर ली।
दौड़ शुरू होने से पहले, दोनों ने मिलकर दौड़ का रास्ता तय किया। जंगल के सारे जानवर दौड़ देखने के लिए जमा हो गए। जब दौड़ शुरू हुई, तो लोमड़ी बहुत तेज दौड़ी और कछुआ धीरे-धीरे अपनी चाल से आगे बढ़ने लगा।
लोमड़ी ने सोचा, “कछुआ तो बहुत पीछे है। मैं थोड़ी देर आराम कर लेती हूँ।” उसने एक पेड़ के नीचे आराम करने का सोचा और सो गई। दूसरी तरफ, कछुआ बिना रुके अपनी धीमी चाल से आगे बढ़ता रहा।
कछुआ लगातार चलता रहा और लोमड़ी को सोता देख उसे कोई चिंता नहीं हुई। वह अपनी मंजिल की ओर बढ़ता गया। जब लोमड़ी की नींद खुली, तो उसने देखा कि कछुआ लगभग मंजिल पर पहुँचने वाला है। उसने तुरंत दौड़ना शुरू किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कछुआ मंजिल तक पहुँच चुका था और दौड़ जीत चुका था।
सभी जानवरों ने कछुए की दृढ़ता और निरंतरता की प्रशंसा की। लोमड़ी ने कछुए से माफी मांगी और उससे सिखा कि कभी किसी की धीमी चाल का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए और न ही खुद पर घमंड करना चाहिए।
सीख: धीमी और स्थिर चाल से भी मंजिल हासिल की जा सकती है। घमंड और लापरवाही से बचना चाहिए।