एक छोटे से गांव में, जहां हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू और खेतों की हरियाली हमेशा बसी रहती थी, रहती थी अंजलि। अंजलि की उम्र अभी सत्रह साल की थी, लेकिन उसके सपने इतने बड़े थे कि गांव की सीमाएं उन्हें समेट नहीं पाती थीं। गांव का नाम था राधापुर, जहां लड़कियों की शादी सोलह-सत्रह की उम्र में हो जाती थी और पढ़ाई-लिखाई को लड़कों का हक समझा जाता था। अंजलि के पिता, राम सिंह, एक साधारण किसान थे। वे मेहनती थे, लेकिन परंपराओं के गुलाम। मां, सरला देवी, घर संभालती थीं और चुपचाप सब सहती थीं।
अंजलि स्कूल में सबसे होशियार छात्रा थी। टीचर हमेशा कहते, “ये लड़की कुछ बड़ा करेगी।” लेकिन घर में बात जब कॉलेज की आती, तो पिता का जवाब एक ही होता – “लड़कियां घर संभालने के लिए होती हैं, बाहर की दुनिया के लिए नहीं।” गांव में एक बार शहर से आई एक महिला डॉक्टर ने लड़कियों को पढ़ाई के बारे में बताया था। उस दिन अंजलि के मन में आग लग गई। वो डॉक्टर बनना चाहती थी – लोगों की जान बचाना, खासकर उन महिलाओं की जो गांव में छोटी-छोटी बीमारियों से मर जाती थीं।
पति ने धोखा दिया, मैंने अपना ग्लो पाया
जब ज़िंदगी ने धोखा दिया, तभी उसने खुद को दोबारा पाया। यह एक ऐसी महिला की कहानी है जिसने टूटने के बजाय चमकना चुना — आत्मसम्मान, हिम्मत और नए सिरे से बनी पहचान की प्रेरणादायक यात्रा।
→ पूरा लेख पढ़ेंएक दिन, गांव में अंजलि के लिए रिश्ता आया। लड़का शहर में नौकरी करता था, घर अच्छा था। पिता खुश हो गए। “ये अच्छा घर है, बेटी। यहां सुख मिलेगा।” लेकिन अंजलि ने मना कर दिया। “पापा, मैं पढ़ना चाहती हूं। डॉक्टर बनना चाहती हूं।” घर में तूफान आ गया। पिता गुस्से में चिल्लाए, “ये सब शहर की बुराइयां हैं! लड़की होकर इतनी जिद!” मां चुप थीं, लेकिन रात में अंजलि के पास आकर बोलीं, “बेटी, समाज क्या कहेगा? हम गरीब हैं, कहां से आएंगे पैसे?“
अंजलि रोई, लेकिन हारी नहीं। उसने फैसला किया कि वो खुद अपनी राह बनाएगी। गांव से दस किलोमीटर दूर एक छोटा शहर था, जहां एक एनजीओ महिलाओं की शिक्षा के लिए काम करता था। अंजलि ने छुपकर वहां आवेदन किया। एक दिन, वो सुबह-सुबह घर से निकल गई, सिर्फ एक बैग में कुछ कपड़े और किताबें लेकर। मां को एक चिट्ठी छोड़ आई – “मां, मैं वापस आऊंगी, लेकिन डॉक्टर बनकर। आपका सपना पूरा करके।“
शहर पहुंचकर अंजलि को पहली बार एहसास हुआ कि दुनिया कितनी बड़ी और क्रूर है। एनजीओ ने उसे हॉस्टल में जगह दी, लेकिन पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिलना मुश्किल था। वो दिन में हॉस्टल में झाड़ू-पोंछा करती, रात में पढ़ती। कभी-कभी भूखे पेट सोना पड़ता। दोस्तों ने ताने मारे, “गांव की लड़की, यहां क्या करेगी?” लेकिन अंजलि के अंदर एक आग थी – वो आग जो उसे जलाती भी थी और रौशनी भी देती थी।
समय बीता। अंजलि ने मेहनत से बारहवीं पास की, फिर मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी शुरू की। दिन-रात किताबों से चिपकी रहती। एक बार परीक्षा में फेल हो गई, तो रोई पूरे दिन। लेकिन अगले दिन फिर उठी। “हार नहीं मानूंगी,” खुद से वादा किया। एनजीओ की दीदी, रेखा मैम, उसकी गुरु बनीं। वो कहतीं, “अंजलि, तू अकेली नहीं है। हर महिला के अंदर शक्ति है, बस उसे जगाना पड़ता है।“
पांच साल बीते। अंजलि ने मेडिकल कॉलेज में एडमिशन ले लिया। स्कॉलरशिप मिली, लेकिन संघर्ष जारी रहा। कॉलेज में लड़के ताने मारते, “लड़की होकर डॉक्टर? मरीज विश्वास कैसे करेंगे?” अंजलि चुप रहती और अपना काम करती। वो अस्पताल में प्रैक्टिस करती, मरीजों की सेवा करती। एक बार एक गरीब महिला को बचाया, जो प्रसव पीड़ा में थी। उस महिला ने आशीर्वाद दिया, “बेटी, तू देवी है।“
अंजलि की सफलता की खबर गांव पहुंची। पिता पहले नाराज थे, लेकिन जब गांव में एक बच्ची की जान अंजलि ने बचाई (वो बच्ची गांव से ही थी), तो पिता का दिल पिघल गया। वे शहर आए, अंजलि से मिले। आंसू उनके आंखों में थे। “बेटी, माफ कर दे। तूने साबित कर दिया कि लड़कियां कम नहीं।“
अंजलि डॉक्टर बन गई। उसने अपना क्लिनिक खोला – गांव के पास ही। मुफ्त में गरीब महिलाओं और बच्चों का इलाज करती। गांव की लड़कियां अब उसे देखकर सपने देखतीं। वो स्कूलों में जाती, लेक्चर देती – “सपने बड़े देखो, संघर्ष करो। तुम्हारे अंदर वो शक्ति है जो दुनिया बदल सकती है।“
आज अंजलि की कहानी रियल शी पावर की मिसाल है। वो अकेली नहीं, बल्कि हजारों लड़कियों की प्रेरणा है। उसने साबित किया कि समाज की दीवारें मजबूत होती हैं, लेकिन एक महिला का इरादा उनसे भी मजबूत। अगर मन में आग हो, तो रास्ते खुद बन जाते हैं।
अंजलि की उड़ान जारी है। वो अब न सिर्फ डॉक्टर है, बल्कि एक सशक्तिकरण की मशाल है। और उसकी कहानी बताती है – नारी शक्ति अमर है!
(यह कहानी काल्पनिक है, लेकिन महिलाओं की वास्तविक संघर्षों और जीत से प्रेरित। रियलशीपावर हिंदी की सभी पाठिकाओं को समर्पित। अगर आपको प्रेरणा मिली, तो अपनी कहानी भी शेयर करें।)
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