जयपुर की अनुपमा तिवाड़ी पिछले 16 सालों से पेड़ों को अपने बच्चों की तरह पाल रही हैं। अब तक उन्होंने 43,650 से भी ज़्यादा पौधे लगाए हैं—स्कूलों, बस स्टैंड, पुलिस चौकी, तालाबों के किनारे, अस्पतालों और सड़कों के आसपास।
जब वो तपती दोपहर में अकेले पौधे लगाती थीं, तो लोग उन्हें पागल कहते थे। लेकिन आज उन्हीं पेड़ों की छांव में राहगीर चैन पाते हैं, सब्ज़ी वाले अपनी दुकान लगाते हैं और परिंदे बसेरा बनाते हैं।
अनुपमा राजस्थान के सरकारी स्कूलों में हिंदी टीचर्स को ट्रेनिंग देती हैं और शिक्षा क्षेत्र में लंबे समय से कार्यरत हैं। वह नीम, गुलमोहर, अमरूद, अनार, चीकू, कचनार, चाँदनी, मोगरा, चमेली और मधुमालती जैसे पौधे लगाती हैं। राख, गन्ने और नारियल के छिलकों से जैविक खाद बनाकर खुद ही पौधे तैयार करती हैं। उनके लिए बागवानी कोई शौक नहीं, एक थेरेपी और ज़िंदगी का मकसद है। मोहल्ले के बंजर पार्क से शुरू हुआ यह सफर अब पूरे शहर तक फैल गया है।
उनका सपना है—एक लाख पौधे लगाना।
और वह कहती हैं, “मुझसे लोग पूछते हैं, आपको इससे क्या फायदा होता है? मैं कहती हूं, जब कोई थका हारा इंसान मेरे पेड़ की छांव में सुकून पाता है, वही मेरा मुनाफा है।”
उनका हर पेड़, आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उम्मीद है।

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