उज्जवल भविष्य के लिए रेशमा सौजानी की संहिता

उज्जवल भविष्य के लिए रेशमा सौजानी की संहिता

a woman in a purple top and jeans standing in front of a table

‘गर्ल्स हू कोड’ की संचालिका रेशमा सौजानी पहली पीढ़ी की भारतीय अमेरिका महिला थी। 34 वर्षीय रेशमा राजनीति से प्रेरित थी और उन्होने अमेरिकी कांग्रेस के चुनाव में बढ़चढ़ कर हिस्सेदारी भी निभायी।

अपने राजनीतिक क्रिया कलापों के दौरान एक बार वह एक स्कूल में गयी प्रौद्योगिकी से सम्बंधित कक्षा में लड़कियों की कमी उन्हें अखरी। उनका मानना था कि प्रौद्योगिकी के ज्ञान के अभाव में लड़कियों का भविष्य उज्जवल नहीं हो सकता है। रेशमा की लड़कियों के टेलैंट पर अटूट विश्वास है और वह उन्हें प्रौद्योगिकी के नये और उभरते स्वरुप से जोड़ना चाहती है। इसी चाहत ने ‘गर्ल्स हू कोड’ को साकार रुप दिया। इस गैर लाभकारी संगठन का उद्देश्य महिलाओं को प्रौद्योगिकी की नयी जानकारी से लैस करना है जिससे कि इस क्षेत्र में लड़के-लड़कियों के बीच की खाई को कम किया जा सके और ‘गर्ल्स हू कोड’ केवल गणित और तकनीक के बारे में नही हैं यह समाज में रुढिवादी बंधनो को तोड़ने और लड़कियों को अपने अंदर की प्रतिभा को पहचानने और उन्हें सशक्त बनाने का माध्यम है। रेशमा कोडिग को सिर्फ तकनीक से नही जोड़ना चाहती थी । यह उसके लिए दुनिया बदलने का माध्यम था। इसके द्वारा वह लड़कियों को तकनीक के क्षेत्र में सशक्त बनाना चाहती थी जिससे कि लड़कियां सामाजिक विकास में बराबरी की हिस्सेदारी निभा सके।

पहले पहल कोडिंग की कक्षायें सप्ताह में एक बार हुआ करती थीं धीरे धीरे यह स्कूल की छुट्टियों के बाद आयोजित की जाने लगी बाद में ऑनलाइन के माध्यम से यह हजारो लड़कियों तक पहुंची और उनके दिमाग में सम्भावनाओं के बीज बोये । रेशमा ने उन्हें सिर्फ कोड करना ही नहीं सिखाया उन्होंने उन्हें बड़े सपने देखना, अपनी प्रतिभा पर विश्वास करना और सफलता के अपने संस्करण खुद बनाना सिखाया। धीरे धीरे रेशमा के जूनून ने समूची दुनिया की आंखे खोली। शेरिल सैंडबर्ग जैसे तकनीकी दिग्गजों से लेकर मिशेल ओबामा तक ने उनके प्रयास को काफी सराहा और उनकी मुहिम ने एक वैश्विक आंदोलन को जन्म दिया। ‘गर्ल्स हू कोड’ एक घटना बन गई और यह आशा की किरण साबित हुई कि तकनीक सिर्फ लड़कों के लिए नहीं थी, यह कोड में सपने देखने के लिए उत्सुक हर दिमाग के लिए थी।

लेकिन रेशमा की इस मुहिम को कई झंझटो से गुजरना पड़ा क्योकिं तकनीक की दुनिया में पुरुष वर्चस्व बरकरार था रेशमा ने हार नहीं मानी और अपने मंच से लड़कियों का समर्थन जारी रखा। बदलाव की वकालत करने के लिए अपने मंच का इस्तेमाल किया और धीरे ध़ीरे परिद्श्य बदलने लगा । आज ‘गर्ल्स हू कोड’ एक शक्ति है चार लाख से अधिक लड़कियां इस कार्यक्रम से लाभान्वित हुईं है। वे रोबोट बना रहे हैं, ऐप्स डिज़ाइन कर रहे हैं, जलवायु परिवर्तन से लेकर सामाजिक न्याय तक हर चीज़ के लिए समाधान तैयार कर रहे हैं। रेशमा के प्रयास ने युवा महिलाओं की एक ऐसी पीढ़ी को जन्म दिया है जो निडर, तकनीक-प्रेमी और अपनी किस्मत खुद तय करने के लिए तैयार हैं।

रेशमा ने अपना अभियान जारी रखा है। “ब्रेव नॉट परफेक्ट” के मंच के माध्यम से उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में कदम बढ़ाया है। वह किताबें लिखती हैं। और सशक्तीकरण और आत्मस्वीकृति के अपने संदेश से लाखो लोगो को प्रेरित करती है। रेशमा की यह मुहिम पुरुष और महिलाओं के बीच की खाई पाटने तक सीमित नही हैं यह लड़कियों और उनकी पूरी क्षमता के बीच अंतर कम करने के बारे में है। यह हर लड़की को याद दिलाने की मुहिम है कि उसकी आवाज मायने रखती है, उसका कोड मायने रखता है। और वह भविष्य को सुनहरा बना सकती है। जब भी किसी सपने की फुसफुसाहट सुनाई दे कि एक ऐसी दुनिया जहां लड़कियां भविष्य लिखती हैं तो रेशमा सौजानी याद आयेगी।

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