मिथिला नगरी में चारों ओर हर्षोल्लास का माहौल था। राजा जनक, जो अपनी विद्वता और धर्मपरायणता के लिए प्रसिद्ध थे, ने अपनी पुत्री सीता के लिए एक भव्य स्वयंवर का आयोजन किया। सीता सुंदर, गुणवान और सौम्य स्वभाव की थीं। उनके पिता चाहते थे कि उनका विवाह किसी ऐसे वीर पुरुष से हो जो सच्चे मन और अद्भुत शक्ति का धनी हो। स्वयंवर के लिए राजा जनक ने एक अनोखी शर्त रखी। उन्होंने घोषणा की, “जो कोई भगवान शिव का पौराणिक धनुष तोड़ेगा, वही सीता का वर बनेगा।”
यह धनुष कोई साधारण धनुष नहीं था। यह विशाल, भारी और इतना शक्तिशाली था कि इसे कोई साधारण मनुष्य हिला भी नहीं सकता था। यह धनुष राजा जनक के पूर्वजों को स्वयं भगवान शिव ने दिया था और इसे उनके महल के पूजा-कक्ष में सजा कर रखा गया था।
स्वयंवर की खबर सुनकर देश-विदेश से राजा-महाराजा मिथिला पहुंचे।। सभी अपने बल और पराक्राम के गर्व में चूर थे। सभागार में राजा जनक, रानी सुनयना और सीता उपस्थित थे।। सीता के हाथ में वरमाला थी, और उनकी नजरें उस वीर की तलाश में थीं जो उनके पिता की शर्त पूरी कर सके।।
एक-एक करके राजाओं ने धनुष उठाने की कोशिश की।। कोई इसे छूकर थक गया, तो कोई इसे देखकर ही घबरा गया।। कुछ राजाओं ने धनुष को हिलाने की कोशिश की, लेकिन वह अपनी जगह से टस से मस न हुआ।। सभागार में हंसी और निराशा की फुसफुसाहट गूंजने लगी।। राजा जनक भी चिंतित हो गए।। उन्होंने सोचा, “क्या कोई ऐसा वीर नहीं है जो मेरी सीता के योग्य हो?”।
इसी बीच, अयोध्या से ऋषि विश्वामित्र अपने दो शिष्यों, राम और लक्ष्मण, के साथ मिथिला पहुंचे।। राम और लक्ष्मण अयोध्या के राजकुंमार थे। और विश्वामित्र के आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।। विश्वामित्र ने राजा जनक का स्वागत किया और स्वयंवर में शामिल होने की अनुमति मांगी।। राम और लक्ष्मण की सादगी और तेजस्वी चेहरों को देखकर सभागार में सभी की नजरें उन पर टिक गईं।। राजा जनक ने प्रसन्नता से उन्हें आमंत्रित किया।।
विश्वामित्र ने राम से कहा, “राम, जाओ और धनुष को आजमाओ।।” राम ने गुरु की आज्ञा मानी और शांत भाव से धनुष के पास गए।।। सभागार में सन्नाटा छा गया।। सभी की नजरें राम पर थीं।। राम ने पहले धनुष को प्रणाम किया और फिर उसे उठाने की तैयारी शुरू की।। जैसे ही राम ने धनुष को अपने हाथों में लिया, वह हल्का हो गया।। मानो स्वयं भगवान शिव ने राम को आशीर्वाद दिया हो।। राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे पूरी ताकत से खींचा।। अचानक एक जोरदार आवाज हुई— “टटक!” धनुष बीच से टटकर चूर-चूर हो गया।। यह आवाज इतनी तेज थी कि सभागार की दीवारें तक कांप उठीं।।
सभी लोग आश्चर्य और खुशी से चिल्ला उठे।। सीता की आंखों में खुशी के आंसू थे।। वह धीरे-धीरे मंच की ओर बढ़ीं और मुस्कुराते हुए राम के गले में वरमाला डाल दी।। राजा जनक और रानी सुनयना की आंखें गर्व और आनंद से नम हो गईं।। उन्होंने राम को गले लगाया और कहा, “राम, तुम ही सीता के योग्य हो।।” विश्वामित्र भी अपने शिष्य की इस उपलब्धि पर मुस्कुराए।।
स्वयंवर के बाद राम और सीता का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ।। मिथिला में चारों ओर उत्सव का माहौल था।। फूलों से सजाए गए मंडप में वेद मंत्र गूंज रहे थे।। अयोध्या से राजा राम के परिवार भी आया।। जब यह खबर अयोध्या पहुंची, तो वहां के लोगों ने दीप जलाकर खुशी मनाई।। राम और सीता की जोड़ी को देखकर हर कोई कहता था कि यह जोड़ी स्वर्ग में बनी है।।
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि आत्मविश्वास, धैर्य और मेहनत से कोई भी असंभव कार्य संभव हो सकता है।। राम ने न तो हड़बड़ाई की और न ही गर्व किया।। उन्होंने शांति और सम्मान के साथ अपने कर्तव्य को पूरा किया।। यह कहानी यह भी सिखाती है कि सच्चा वीर वही है जो नम्रता और धर्म के रास्ते पर चलता है।।