डिजिटल बर्नआउट और भारतीय महिलाएं: क्यों 'सब कुछ हासिल करने' की होड़ मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ रही है?

डिजिटल बर्नआउट और भारतीय महिलाएं: क्यों ‘सब कुछ हासिल करने’ की होड़ मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ रही है?

डिजिटल बर्नआउट

आज की आधुनिक दुनिया में, जब हम सशक्तिकरण की बात करते हैं, तो अक्सर “सुपरवुमन” की एक छवि सामने आती है। वह महिला जो ऑफिस की मीटिंग्स भी संभालती है, घर के काम में भी निपुण है, और सोशल मीडिया पर उसकी लाइफ ‘परफेक्ट’ दिखती है। लेकिन इस चमक-धमक वाली तस्वीर के पीछे एक कड़वा सच छिपा है—डिजिटल बर्नआउट (Digital Burnout)

विशेषकर भारत में, जहाँ महिलाएं पारंपरिक और आधुनिक भूमिकाओं के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रही हैं, मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) एक गंभीर चर्चा का विषय बन गया है।

1. क्या है डिजिटल बर्नआउट? (What is Digital Burnout?)

डिजिटल बर्नआउट केवल थकान नहीं है; यह लंबे समय तक तकनीक, स्क्रीन और सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से होने वाली मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक थकावट है। महिलाओं के लिए यह चुनौती और भी बड़ी है क्योंकि वे न केवल अपने काम के लिए डिजिटल माध्यमों पर निर्भर हैं, बल्कि घर के प्रबंधन और सामाजिक जुड़ाव के लिए भी फोन और लैपटॉप से बंधी रहती हैं।

2. ‘परफेक्ट लाइफ’ का दबाव और सोशल मीडिया

भारत में महिलाओं के बीच FOMO (Fear of Missing Out) और तुलना की भावना तेजी से बढ़ रही है। इंस्टाग्राम और फेसबुक पर अन्य महिलाओं की ‘फिल्टर्ड’ लाइफ देखकर अक्सर महिलाएं अपनी असल जिंदगी को कमतर आंकने लगती हैं।

  • तुलना का जाल: अपनी बॉडी इमेज, करियर की प्रगति और बच्चों की परवरिश की दूसरों से तुलना करना चिंता (Anxiety) और कम आत्मविश्वास का कारण बन रहा है।
  • दिखावे की संस्कृति: हर खास पल को कैप्चर करने और ऑनलाइन प्रशंसा (Likes/Comments) पाने की लालसा ने वर्तमान पल का आनंद छीन लिया है।

3. ‘वर्क फ्रॉम होम’ या ‘वर्क फॉर होम’?

महामारी के बाद डिजिटल वर्किंग कल्चर ने महिलाओं के लिए वर्क-लाइफ बैलेंस (Work-Life Balance) की सीमाओं को धुंधला कर दिया है।

  • हमेशा ऑनलाइन रहने की मजबूरी: ऑफिस के ईमेल और व्हाट्सएप ग्रुप्स ने निजी समय को खत्म कर दिया है।
  • दोहरा बोझ (The Double Burden): भारतीय समाज में आज भी घरेलू जिम्मेदारियों का बड़ा हिस्सा महिलाओं पर है। ‘स्क्रीन टाइम’ बढ़ने के कारण उन्हें आराम का समय नहीं मिल पा रहा है, जो धीरे-धीरे क्रोनिक स्ट्रेस (Chronic Stress) में बदल जाता है।

4. वैज्ञानिक तथ्य और शोध क्या कहते हैं?

हालिया शोधों के अनुसार, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में बर्नआउट के लक्षण अधिक पाए जाते हैं। इसके मुख्य कारणों में शामिल हैं:

  • मल्टीटास्किंग: महिलाएं एक साथ कई डिजिटल और फिजिकल टास्क करती हैं, जिससे मस्तिष्क की ऊर्जा जल्दी समाप्त होती है।
  • नींद की कमी (Sleep Deprivation): सोने से पहले फोन का उपयोग मेलाटोनिन (Melatonin) हार्मोन को प्रभावित करता है, जिससे गहरी नींद नहीं आती और सुबह थकान महसूस होती है।

5. डिजिटल डिटॉक्स और बचाव के उपाय (Tips for Mental Wellness)

अगर आप भी बर्नआउट महसूस कर रही हैं, तो ये कदम आपकी मदद कर सकते हैं:

  • डिजिटल बाउंड्री तय करें: रात 9 बजे के बाद फोन को ‘डू नॉट डिस्टर्ब’ मोड पर डालें।
  • 20-20-20 नियम अपनाएं: स्क्रीन देखते समय हर 20 मिनट में 20 फीट दूर 20 सेकंड के लिए देखें।
  • सचेत उपयोग (Mindful Usage): उन अकाउंट्स को अनफॉलो करें जो आपको मानसिक रूप से परेशान करते हैं या हीन भावना महसूस कराते हैं।
  • शारीरिक गतिविधि: योग और ध्यान (Meditation) मानसिक स्पष्टता के लिए अनिवार्य हैं।

निष्कर्ष

महिला सशक्तिकरण का मतलब केवल आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना नहीं है, बल्कि अपनी मानसिक शांति और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना भी है। “सब कुछ कर पाने” की रेस में खुद को खो देना समझदारी नहीं है। यह समय है कि हम डिजिटल दुनिया से थोड़ा ब्रेक लें और अपनी वास्तविक दुनिया से जुड़ें।

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