तराना बर्कः "मैं भी," नये प्रतिमान गढ़ने की मुहिम

तराना बर्कः “मैं भी,” नये प्रतिमान गढ़ने की मुहिम

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तराना बर्क की कहानी कई झंझावटों से गुजरते हुए एक वैश्विक आवाज बनी, इनकी पहल ने समाज में व्याप्त भेदभाव एवं विशेषाधिकार की नीव हिला दी। “मैं भी,” हैशटैग के ट्रेंड होने से बहुत पहले, 28 वर्षीय बर्क एक ग्रीष्मकालीन शिविर में एक युवा, एक लड़की के पास घुटनों के बल बैठ गया और बचपन के आघात के शांत स्वर में फुसफुसाते हुए एक बयान सुना रहा था। इससे बर्क को अंदर तक झकझोर दिया और उसने इसके हल के लिए “मैं भी,” पेश किया। यह एक सरल वाक्यांश जिसने सामाजिक क्रांति को जन्म दिया और अनगिनत महिलाओं को प्रेरित किया। इस एक वाक्य ने यौन हिंसा को पुनः परिभाषित किया वे दो शब्द, सहानुभूति की उपजाऊ भूमि में बोए गए बीज, वर्षों बाद एक ऐसे आंदोलन में विकसित होंगे जो साम्राज्यों को उखाड़ फेंकेगा और यौन हिंसा पर बातचीत को फिर से परिभाषित करेगा।

  • “मैं भी,” सिर्फ एक हैशटैग नहीं था; यह सहानुभूति और सामूहिक कार्रवाई पर आधारित एक आंदोलन था।

  • “मैं भी,” अन्य लोगों का समर्थन करने और उत्पीड़न की प्रणालियों को खत्म करने पर केंद्रित है।

  • यह यौन हिंसा के खिलाफ लगातार संघर्ष है।

  • यह एक ऐसी दुनिया की तरफ अग्रसर है जहां “मैं भी,” अतीत की बात बन जाये।

“मैं भी,” की शुरुआत सार्वजनिक करने के उद्देश्य से नहीं हुई थी इसका मतलब लोगों को यह बताना था कि वे अकेले नहीं है हम भी उनके साथ है। पहले पहल गरीब एवं हाशिये पर रहने वाले लोगों को साहस देने का प्रयास था क्योंकि बर्क एक समाज सेवी थी और हाशिये के लोगों को सशक्त करने के प्रयास में लगी थी उनके बीच काम करते हुए ही उन्होंने “मैं भी,” इजाद किया। यह शुरुआत धीरे-धीरे एक बटवृक्ष बन गयी। 2006 में “मैं भी,” ने डिजिटल परिदृश्य में दस्तक दे दी।

धीरे-धीरे, फुसफुसाहटें आवाजें बन गईं, संदेश बोर्डों और व्यक्तिगत ब्लॉगों पर साझा की गईं। यह वाक्यांश सीमाओं को पार कर गया, महासागरों और सामाजिक स्तरों के पार फुसफुसाहट, मौन की संस्कृति के खिलाफ इसने एक शांत विद्रोह का रुप अख्तिहार कर लिया।

फिर, 2017 में समूचे सामाजिक परिदृश्य में एक भूचाल आ गया। वीनस्टीन, कॉस्बी, स्पेसी – थंडरबोल्ट्स जैसे नामों ने हॉलीवुड के देवताओं को हिलाकर रख दिया, सोशल मीडिया पर “मी टू” की बाढ़ से उनका पतन शुरू हो गया। वर्षों से निष्क्रिय हैशटैग एक ज्वार की लहर बन गया, जिसने शालीनता को दूर कर दिया और यौन उत्पीड़न के बारे में वैश्विक बातचीत को प्रज्वलित कर दिया। कॉरपोरेट बोर्डरूम से लेकर छोटे शहरों तक, न्याय, जवाबदेही और बदलाव की फुसफुसाहटें गगनभेदी आवाज बन गईं।

आज “मैं भी,” की वजह से कानून बदल गये है और एक नये सांस्कृतिक परिदृश्य का उदय हो गया है। इसमें चुप्पी साधना एक पाप है। लेकिन बर्क ने अपने काम का दायरा बड़ा कर दिया है वह समाज में व्याप्त समस्त दुर्भावलाओं एवं भेदभाव को आमूल चूल नष्ट करना चाहती है। नस्लीय भेदभाव के खिलाफ सत्तत सक्रिय है।

तराना बर्क की कहानी सिर्फ “मैं भी,” के बारे में नहीं है; यह एक महिला की असीम शक्ति के बारे में है जिसने फुसफुसाहटों को अंधेरे में मरने से मना कर दिया। यह सहानुभूति की परिवर्तनकारी शक्ति, साझा अनुभव की निरंतर गति और अटूट दृढ़ विश्वास का प्रमाण है कि एक एकल आवाज किस प्रकार समाज में नई इबादत लिख सकती है।

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