अस्मा जहाँगीर अपने सिदांतों के प्रति सजग और अटल थी। मानव अधिकारों की प्रबल पक्षधर थी और अपने समय में वह पाकिस्तान में अन्याय के खिलाफ सशक्त आवाज थी। वह एक प्रतिष्ठित कानूनी परिवार में जन्मी थी और समाज में व्याप्त असमानताओं एवं पाकिस्तानी समाज में मानव अधिकारों की दयनीय स्थिति से भली भांति परिचित थी, इन परिस्थितियों ने उनमें न्याय के प्रति गहरी प्रतिब्दता को प्रज्वलित किया।
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अस्मा जहांगीर के साहस और समर्पण ने पाकिस्तानी महिलाओं के लिए कानून और सक्रियता का मार्ग प्रशस्त किया।
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मानवाधिकारों के लिए उनकी अटूट लड़ाई ने राजनीतिक शक्ति और स्थापित सामाजिक मानदंडों दोनों को चुनौती दी।
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उनकी विरासत कानूनी जीतों से भी आगे तक फैली हुई है, जो पीढ़ियों को अधिक न्यायपूर्ण और न्यायसंगत समाज के लिए प्रेरित करती है।
अपने कैरियर की शुरुआत में ही उन्होंने समाज के हाशिये पर खड़े लोगो की आवाज बुलंद की। सत्ता द्वारा लगाये गये लोगों की पैरोकार बनकर उन्होंने राजनीतिक असंतुष्टों का बचाव किया, महिलाओं के खिलाफ कठोर कानूनों को चुनौती दी और हर स्तर पर निडर होकर सत्ता के दुरुपयोग को उजागर किया। उनकी अदालती जीतें मील के पत्थर साबित हुई, उनकी मुहिम ने भेदभाव की इमारत को ढहा दिया, और उनका काला लबादा अत्याचार के खिलाफ एक ढाल था।
सैन्य शासन की तीखी आलोचना के लिए उनकों कारावास की सजा मिली और देश से निर्वासन भी भोगना पड़ा। इस सबने ने उसकी हिम्मत और बढ़ाई और देश के बाहर से भी उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखी। अन्तर्राष्ट्रीय मंचो पर उनकी आवाज गूज़ती रही, जिससे समूचे विश्व में उनकी आवाज पाकिस्तान में वंचितो, सत्ता विरोधियों की आवाज बन गयी। पाकिस्तान में प्रजातंत्र की वापसी के साथ आस्मा जहाँगीर अपने वतन वापस आ गयी। 2003 में, वह न्याय के सर्वोच्च पद पर आसीन हुईं और मुख्य न्यायाधीश का पद संभालने वाली पहली महिला बनीं।
एक ऐसा देश जहाँ सामाजिक विषमता हर स्तर पर व्याप्त थी और धार्मिक कट्टरता ने राजनीति से लेकर समाज के प्रत्येक वर्ग में अपनी पैठ बना ली थी। ऐसे माहौल में उन्होंने कानून के शासन को स्थापित करने की भरपूर कोशिश की और कानून के प्रति अपने उत्तरदायित्व को निडरता पूर्वक निभाया।
आस्माँ जहाँगीर का प्रभाव कानूनी क्षेत्र से बाहर तक फैला हुआ है। रिटायरमेंट के बाद वह मानव अधिकारों के लिए सतत प्रयासरत रही। उन्होंने एक फाउंडेशन बनाया और उसके तहत युवा वकीलों को सलाह देती थी। समाज में हाशियें पर खड़े लोगों की आवाज उठाती रही। उनका यह सफर 2018 में उनकी मृत्यु के साथ खत्म हुआ। परन्तु उनके द्वारा जलायी गयी ज्वाला लगातार जल रही हैं और समाज में अनवरत इसकी गूंज सुनाई देती है।