एक समय की बात है, जब एक तालाब में एक कछुआ और दो हंसों का जोड़ा निवास करता था। इन हंसों और कछुए के बीच गहरी मित्रता थी। कछुआ बहुत ही बातूनी था और हंसों से बहुत बातें करता था, शाम होते ही वह अपने घर लौट जाता था।
एक वर्ष, जब तालाब के आस-पास बारिश न होने के कारण तालाब सूखने लगा, कछुए को चिंता सताने लगी कि तालाब गर्मी आते-आते पूरी तरह सूख जाएगा। उसने हंसों से अनुरोध किया कि वे आस-पास के क्षेत्र में जाकर किसी ऐसे तालाब की खोज करें जहाँ पानी हो और वे वहां जा सकें।
हंसों ने पास के एक गाँव में ऐसा तालाब ढूंढ लिया और कछुए को इसकी सूचना दी। कछुए ने हंसों से अनुरोध किया कि वे उसे भी उस तालाब तक ले चलें। हंसों ने एक लकड़ी लाकर कछुए को उसके बीच में अपने मुंह में दबाने को कहा और चेतावनी दी कि वह पूरे रास्ते चुप रहे, नहीं तो गिर जाएगा।
जब हंस आसमान में कछुए को लेकर उड़ रहे थे, तभी एक गाँव के बच्चों ने उन्हें देखा और चिल्लाने लगे। कछुआ ने उत्सुकतावश नीचे देखा और बच्चों की बात सुनकर मुंह खोल दिया। इससे लकड़ी उसके मुंह से छूट गई और वह गांव में गिर गया।
ज्यादा ऊंचाई से गिरने के कारण कछुए को बहुत चोट आई और वह तड़पकर मर गया।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बुद्धिमान व्यक्ति चुप रहते हैं और मुर्ख व्यक्ति अपने पर काबू नहीं रख पाते।